क्या पीएम की अध्यक्षता वाली आपदा प्राधिकरण ने कोरोना पीड़ितों का मुआवजा नहीं देने का फैसला कियाः सुप्रीम कोर्ट

New Delhi: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से सवाल किया है कि क्या प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने यह फैसला लिया है कि कोरोना से मौत के मामले में परिजनों को चार लाख रुपये मुआवजा नहीं दिया जा सकता? अदालत ने इस मामले में पक्षकारों को अपनी लिखित दलीलें दाखिल करने के लिए तीन दिन का समय दिया है।

जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से यह सवाल तब किया, जब वह चार लाख रुपये मुआवजा न देने के सरकार के फैसले का बचाव कर रहे थे।

मेहता का कहना था कि मुआवजा देने से राज्यों के वित्त और महामारी से निपटने के प्रयास प्रभावित होंगे। इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट ने वकील गौरव कुमार बंसल और रीपक कंसल की अलग-अलग याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।

सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल ने पीठ से कहा कि ऐसा नहीं है कि सरकार के पास कोविड पीड़ितों के परिजनों को चार लाख रुपये की अनुग्रह राशि देने के लिए धन नहीं है, लेकिन व्यय का फोकस समग्र था। पुनर्वास, तैयारी आदि के लिए धन उपलब्ध कराने मुख्य मकसद है।

इस पर पीठ ने मेहता से कहा, मतलब आपका कहना है कि आपके पास अनुग्रह राशि के लिए धन नहीं है, बल्कि अन्य उपायों के लिए हैं। अगर सरकार कह रही है कि उसके पास फंड नहीं है तो इसका व्यापक असर होगा।

पीठ ने इस पहलू पर केंद्र से स्पष्टीकरण मांगा है। साथ ही पीठ ने मेहता से कहा कि वह प्रत्येक राज्य सरकार द्वारा कोविड-19 पीड़ितों के परिवारों को भुगतान की गई मुआवजा राशि का विवरण दें।

केंद्र सरकार ने रविवार को सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा था कि कोविड -19 के कारण मरने वाले सभी लोगों को अनुग्रह राशि का भुगतान नहीं किया जा सकता है, क्योंकि यह आपदा राहत कोष को समाप्त कर देगा। साथ ही यह केंद्र और राज्यों की महामारी की भविष्य की लहरों को दूर करने की तैयारी को भी प्रभावित करेगा।

पीठ ने कहा, कोई भी यह नहीं कह सकता कि यह आपदा प्रबंधन अधिनियम के तहत आपदा नहीं है। अदालत ने कहा कि हर आपदा अलग होती है और कोई छोटी तो कोई बड़ी महामारी होती है। बड़ी बाढ़ या छोटी बाढ़ हो सकती है। पीठ ने कहा, छोटी महामारी के मानकों को एक बड़ी महामारी पर लागू नहीं किया जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से यह भी कहा है कि वह कोविड से मौत के मामले में जारी होने वाले मृत्यु प्रमाणपत्र की प्रक्रिया को आसान बनाए। अदालत ने कहा कि यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि अगर कोविड का मामला होने के बावजूद प्रमाणपत्र में यह दर्ज न हो तो उसमें सुधार हो सके। अदालत ने कहा, पहली नजर में हमें लगता है कि प्रमाणपत्र की प्रक्रिया जटिल है। प्रक्रिया को साधारण क्यों नहीं बनाया जा सकता है?

मेहता ने कहा कि ज्यादातर राज्य आपदा राहत कोष (एसडीआरएफ) के अलावा अन्य फंड से भुगतान कर रहे हैं। एक हस्तक्षेपकर्ता की ओर से पेश हुए एक वकील ने दलील दी कि कोविड पीड़ितों को मुआवजे पर एक समान योजना नहीं है। उन्होंने कहा, कोविड से मौत पर परिजन को दिल्ली में 50 हजार रुपये का भुगतान किया जा रहा है, जबकि बिहार में चार लाख रुपये और कर्नाटक में एक लाख रुपये दिए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि मुआवजे को लेकर असमानता है।

वकील ने यह भी कहा कि पीड़ितों को राहत प्रदान करने के लिए एक योजना तैयार करने के लिए सरकार अधिनियम की धारा-12 के तहत कर्त्तव्यबद्ध है। उन्होंने 14 मार्च, 2020 को जारी अधिसूचना का हवाला दिया जिसमें सरकार ने कोविड को प्राकृतिक आपदा के रूप में अधिसूचित किया। यह निश्चित रूप से एक आपदा की तरह है।

याचिकाओं में आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा-12 का हवाला देते हुए कहा गया है कि राष्ट्रीय प्राधिकरण को आपदा से प्रभावित व्यक्तियों को राहत के न्यूनतम मानकों के लिए दिशा-निर्देशों की सिफारिश करनी चाहिए, जिसमें अनुग्रह सहायता राशि शामिल होनी चाहिए। 

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