हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल व विधि सचिव सहित पांच न्यायिक पदाधिकारी बनेंगे हाईकोर्ट के जज, कोलेजियम ने दी मंजूरी

Ranchi: Supreme Court Collegium झारखंड हाईकोर्ट को जल्द ही पांच नए मिलेंगे। सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियय ने हाईकोर्ट से भेजे गए पांच नामों की मंजूरी प्रदान कर दी है। राष्ट्रपति भवन से इसकी मंजूरी मिलने के बाद केंद्रीय विधि एवं न्याय विभाग की ओर से नियुक्ति की अधिसूचना जारी की जाएगी। सभी पांच जज न्यायिक सेवा के अधिकारी हैं।

जिन पांच लोगों के नाम की मंजूरी प्रदान की गई है उनमें प्रधान जिला जज, प्रदीप कुमार श्रीवास्तव, गौतम कुमार चौधरी, हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल अंबुज नाथ, रांची के प्रधान न्यायुक्त नवनीत कुमार और राज्य के विधि सचिव संजय प्रसाद शामिल हैं। हाईकोर्ट में फिलहाल चीफ जस्टिस समेत 15 जज हैं। नए जजों की नियुक्ति के बाद जजों की कुल संख्या 20 हो जाएगी। जबकि स्वीकृत पद 25 हैं।

खेलकूद कोटे का लाभ नहीं मिलने के मामले में सुनवाई जारी
झारखंड हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस डा रवि रंजन व जस्टिस एसएन प्रसाद की अदालत में न्यायिक पदाधिकारियों की नियुक्ति में स्पोर्ट्स कोटे का लाभ नहीं दिए जाने के मामले पर सुनवाई हुई। सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से इस बात को लेकर बहस की जा रही है कि खेलकूद प्रमाण पत्र की संबद्धता और मान्यता में क्या अंतर है।

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हालांकि इस दौरान राज्य सरकार की ओर से बहस पूरी नहीं हो पाई। इसके बाद अदालत ने अगली सुनवाई के लिए 19 सितंबर की तिथि निर्धारित की है। इस मामले में मयंक सिंह ठाकुर ने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की है। सुनवाई के दौरान प्रार्थी की ओर से अदालत को बताया गया कि जेपीएससी ने न्यायिक पदाधिकारियों की नियुक्ति के लिए वर्ष 2018 में विज्ञापन निकाला था।

उन्होंने भी आवेदन भरा था, लेकिन उन्हें स्पोर्ट्स कोटा का लाभ नहीं दिया गया। जबकि उन्होंने स्पोर्ट्स से संबंधित सभी प्रमाणपत्र आवेदन के साथ संलग्न किए थे। इस पर जेपीएससी के अधिवक्ता संजय पिपरवाल और प्रिंस कुमार सिंह ने कहा कि प्रार्थी का स्पोर्ट्स कोटे के तहत इसलिए चयन नहीं हुआ कि प्रार्थी का स्पोर्ट्स से संबंधित प्रमाणपत्र विज्ञापन के अनुरूप नहीं थे और वह मान्य नहीं थे।

सरकार के वर्ष 2007 के संकल्प के अनुसार भारतीय ओलंपिक संघ से संबद्ध खेल फेडरेशन की ओर से आयोजित टूर्नामेंट में शामिल होने के प्रमाणपत्र पर ही उक्त कोटे का लाभ दिया जा सकता है, इसलिए प्रार्थी को इसका लाभ नहीं दिया गया।

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