Farmers Movement: सुप्रीम कोर्ट की तल्ख टिप्पणी- किसानों ने शहर का गला घोंट दिया, आपको परेशानी पैदा करने का हक नहीं

New Delhi: Farmers Movement कृषि कानूनों के खिलाफ जंतर मंतर पर प्रदर्शन करने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी की है। सुप्रीम कोर्ट ने किसान महापंचायत से कहा कि अगर आप कोर्ट आए हैं तो यह धरना प्रदर्शन क्यों दे रहे हैं?। शीर्ष अदालत ने किसानों से कहा कि आपको प्रदर्शन का अधिकार है, लेकिन राजमार्ग को रोककर लोगों की आवाजाही रोकने का हक नहीं है। आपके प्रदर्शन की वजह से आम लोगों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। 

सुप्रीम कोर्ट ने किसान महापंचाय संगठन पर नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि लंबे समय से विरोध कर रहे किसानों ने पूरे शहर का गला घोंट दिया है और अब शहर के अंदर आकर उत्पात मचाना चाहते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता किसान महापंचायत संगठन से कहा कि पहले आप हलफनामा दायर कर बताए कि फिलहाल सीमाओं पर बैठे प्रदर्शकारियों से आपका कोई संबंध तो नहीं है। सर्वोच्च अदालत ने याचिका की प्रति केंद्रीय एजेंसी और अटॉर्नी जनरल को देने का भी आदेश जारी किया है। 

इससे पहल सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा कि वह राष्ट्रीय राजधानी में तीन कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसानों द्वारा सड़क की ‘नाकेबंदी’ को हटाने के लिए क्या कर रही है? शीर्ष अदालत ने एक बार फिर अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कि सड़को को हमेशा के लिए कब्जा नहीं किया जा सकता। जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि किसी समस्या का समाधान न्यायिक मंच, आंदोलन या संसदीय बहस के माध्यम से किया जा सकता है,  लेकिन सड़कों को अवरुद्ध नहीं किया जा सकता है और यह एक स्थायी समस्या नहीं हो सकती है। 

पीठ ने कहा, ‘हम पहले ही कानून बना चुके हैं और आपको इसे लागू करना होगा। अगर हम अतिक्रमण करते हैं तो आप कह सकते हैं कि हमने आपके अधिकार क्षेत्र में अतिक्रमण किया है। कुछ शिकायतें हैं जिनका निवारण किया जाना चाहिए। शीर्ष अदालत ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और एडिशनल सॉलिसिटर जनरल(एएसजी) केएम नटराज से विशेष रूप से पूछा कि सरकार इस मामले में क्या कर रही है?।

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शीर्ष कोर्ट के जवाब में मेहता ने कहा कि बहुत ही उच्च स्तर पर एक तीन सदस्यीय समिति का गठन किया गया है। हमने उन्हें (आंदोलनकारी किसानों को) बैठक में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया, लेकिन वे बैठक में शामिल नहीं हुए। मेहता ने मोनिका अग्रवाल द्वारा दिल्ली व नोएडा के बीच आवाजाही में हो रही परेशानी को लेकर दायर याचिका में आंदोलनकारी किसान समूहों को पक्षकार बनाने के लिए अदालत की अनुमति मांगी। 

शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार को इस संबंध में एक आवेदन दायर करने की अनुमति दे दी और मामले को सोमवार को विचार के लिए रखा दिया है। पिछले हफ्ते हरियाणा सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर कहा था कि वह दिल्ली से सटे राज्य और राष्ट्रीय राजमार्गों पर सड़कों पर जमे बैठे किसानों को सड़कों से हटने के लिए मनाने के अपने प्रयास जारी रखेगी भले ही किसान इस मुद्दे को हल करने के लिए गठित पैनल से मिलने के लिए आगे नहीं आए।

बता दें कि तीन केंद्रीय कानूनों के विरोध में नवंबर से हजारों किसान दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश की सीमाओं और इन राज्यों के राजमार्गों पर डेरा डाले हुए हैं। इन मार्गों पर वाणिज्यिक गतिविधियों को प्रभावित हुआ है और कई बिंदुओं पर यातायात को डायवर्ट किया गया है जिससे यात्रियों की यात्रा के समय में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
पीठ मोनिका अग्रवाल की उस शिकायत पर विचार कर रही है कि लगातार सड़क अवरुद्ध होने और विरोध प्रदर्शन के कारण उसे नोएडा से दिल्ली की यात्रा करने में 20 मिनट के बजाय लगभग दो घंटे लग रहे हैं।

एक आईटी कंपनी में काम करने वाली मोनिका ने अपनी याचिका में कहा है कि उन्हें काम के लिए दिल्ली और नोएडा के बीच आने-जाने की जरूरत है लेकिन यात्रा का समय उनके लिए एक ‘बुरा सपना’ बन गया है।  23 अगस्त को हुई पिछली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि यह सुनिश्चित करना केंद्र और राज्यों की जिम्मेदारी है कि आंदोलनकारी सार्वजनिक सड़कों को अवरुद्ध न करें।

कोर्ट ने सड़कों को अवरुद्ध कर किसानों के प्रदर्शन को गंभीरता से लेते हुए कहा था कि केंद्र और राज्यों को समन्चय कर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि यदि विरोध प्रदर्शन जारी है तो यातायात में किसी भी तरह का व्यवधान न आए ताकि लोगों के आने-जाने में परेशानी न हो और उन्हें कोई असुविधा न हो। 

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