जासूसी मामलाः जांच समिति की रिपोर्ट अभियोजन का आधार नहीं हो सकती, सीबीआई कानून के मुताबिक जांच करेः सुप्रीम कोर्ट

New Delhi: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इसरो वैज्ञानिक नम्बी नारायणन से संबधित 1994 के जासूसी मामले में दोषी पुलिस अधिकारियों की भूमिका के बारे में शीर्ष अदालत के पूर्व जस्टिस डी के जैन की अगुवाई वाली कमेटी की रिपोर्ट अभियोजन का आधार नहीं हो सकती है। सीबीआई को दर्ज प्राथमिकी की जांच करके सामग्री एकत्र करनी होगी ।

नारायणन को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले न केवल बरी कर दिया था बल्कि उन्हें 50 लाख रुपये का मुआवजा देने का भी निर्देश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामले में प्राथमिकी दर्ज करने वाले केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को जांच करना होगा और कानून के अनुसार आगे बढ़ना होगा ।

जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने कहा कि केवल रिपोर्ट के आधार पर वे (सीबीआई) आपके (आरोपी) खिलाफ नहीं जा सकते हैं। उन्हें जांच करना होगा। सामग्री एकत्र करनी होगी और तब कानून के अनुसार उन्हें आगे बढ़ना होगा। अंतत: जांच ही करनी होगी। रिपोर्ट आपके अभियोजन का आधार नहीं हो सकती है।

पीठ ने सुनवाई के दौरान यह निर्देश उस वक्त दिया जब एक आरोपी के अधिवक्ता ने कहा कि यह रिपोर्ट उनके साथ भी साझा की जानी चाहिये क्योंकि सीबीआई को इस पर बेहद यकीन है। पीठ ने कहा कि रिपोर्ट से कुछ नहीं होगा। यह रिपोर्ट केवल शुरूआती जानकारी है। अंतत: सीबीआई जांच करेगी जिसके परिणाम सामने आयेंगे।

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शुरूआत में सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सीबीआई की प्राथमिकी में इस रिपोर्ट का सार है। पीठ ने कहा कि रिपोर्ट में कहा गया है कि प्राथमिकी दर्ज की गयी है लेकिन इसे वेबसाइट पर अपलोड नहीं किया गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केवल समिति की रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया जाना चाहिए और अधिकारी कानून के अनुसार आगे बढ़ने के लिए स्वतंत्र हैं। मेहता ने कहा कि मामले में दर्ज प्राथमिकी संबंधित अदालत में दायर की गयी है और अगर अदालत की अनुमति मिलती है तो इसे दिन में ही अपलोड किया जा सकता है।

पीठ ने कहा कि हम यह जोड़ने के लिए जल्दबाजी कर रहे हैं, पहले के आदेश में केवल सीबीआई को यह सुनिश्चित करना था कि न्यायमूर्ति डी के जैन कमेटी की रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया जाना चाहिए। अब जब सीबीआई ने मामले में आगे बढ़ने का फैसला किया है, तो प्राथमिकी दर्ज करने के बाद आगे की कार्रवाई कानून के अनुसार होगी और इस संबंध में इस अदालत से किसी निर्देश की आवश्यकता नहीं है।

पीठ ने यह भी कहा कि आरोपियों को उपलब्ध उपायों का लाभ लेने की स्वतंत्रता होगी और संबंधित अदालत कानून के अनुसार इस पर फैसला करेगी। मामले की सुनवाई के अंत में अतिरिक्त सॉलीसिटर जनरल एस वी राजू ने कहा कि चूंकि कमेटी ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है, इसलिये इसे अब बंद करना पड़ सकता है।

कमेटी के प्रयासों की सराहना करते हुये पीठ ने कहा कि जैसा कि रिपोर्ट पर अंतिम रूप से कार्रवाई की गई है, हम एसएजी एस वी राजू के अनुरोध को स्वीकार करते हैं कि इस अदालत के आदेश के तहत गठित न्यायमूर्ति डी के जैन कमेटी कार्य करना बंद कर सकती है।

शीर्ष अदालत ने 14 सितंबर 2018 को केरल सरकार को नारायणन को ‘भारी अपमान’ झेलने पर मजबूर करने के लिए 50 लाख रुपये का मुआवजा देने तथा तीन सदस्यीय कमेटी गठित करने का निर्देश दिया था ।

यह मामला अक्टूबर 1994 में प्रकाश में आया था। उस समय मालदीव की एक नागरिक रशीदा को तिरूवनंतपुरम में इसरो रॉकेट इंजन का गोपनीय रेखाचित्र प्राप्त करते गिरफ्तार किया गया था । रशीदा को यह रेखाचित्र पाकिस्तान को बेचना था।

इस मामले में इसरो के क्रायोजेनिक इंजन परियोजना के तत्कालीन निदेशक नारायणन को इसरो के उप निदेशक डी शशिकुमारन के साथ गिरफ्तार किया गया था। इस मामले में रशीदा की मालदीव की दोस्त फौजिया हसन को भी गिरफ्तार किया गया था।

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