Ranchi: Assistant Professor appointment in BAU झारखंड हाईकोर्ट ने बीएयू में नियुक्ति के एक मामले में सुनवाई के दौरान इस बात को लेकर कड़ी नाराजगी जताई कि जो जो लोग इस मामले को लेकर कोर्ट आए हैं, उनसे काम नहीं लिया जा रहा है, जबकि दूसरे अन्य संविदा पर कार्यरत सहायक प्रोफेसर से काम लिया जा रहा है।
जस्टिस डॉ एसएन पाठक की अदालत ने मौखिक रूप से कहा कि बीएयू की ओर से ऐसा किया जाना अवमानना दायरे में आता है। इस तरह का भेदभावपूर्ण रवैया बीएयू से आपेक्षित नहीं है। इसके बाद अदालत ने प्रार्थी की ओर से दाखिल आइए पर जवाब मांगा है। मामले में अगली सुनवाई जनवरी में होगी।
सुनवाई के दौरान वरीय अधिवक्ता अजीत कुमार व अधिवक्ता चंचल जैन ने अदालत को बताया कि प्रार्थियों वर्ष 2015 से ही संविदा के आधार पर बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर सह कनीय वैज्ञानिक के पद पर काम कर रहे हैं। हाईकोर्ट ने नई नियुक्ति के लिए जारी विज्ञापन पर पूर्व में रोक लगा दी थी।
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इसके बाद प्रार्थियों का संविदा पर काम करने की अवधि 16 नवंबर को समाप्त हो गई। ऐसे में हाई कोर्ट के रोक के बाद वैसे लोगों से काम नहीं लिया जा रहा है, जिन्होंने हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की है। जबकि उन लोगों से अभी भी काम लिया जा रहा है, जो हाई कोर्ट नहीं गए थे।
उनकी भी संविदा पर काम करने की अवधि 16 नवंबर को समाप्त हो रही है। बीएयू की ओर से ऐसा किया जाना पूरी तरह से गलत है और भेदभाव पूर्ण है। इस पर अदालत ने मौखिक रूप से कहा कि बीएयू की यह कृत्य अवमानना के दायरे में आता है। कोर्ट ने पूरे मामले में बीएयू को जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।
बता दें कि डॉ संजीत कुमार सहित 13 अन्य सहायक प्रोफेसर ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की है। जबकि बीएयू में 27 सहायक प्रोफेसर संविदा पर काम कर रहे हैं। वर्तमान में सभी की संविदा पर कार्य करने की अवधि समाप्त हो गई है, लेकिन 14 लोगों से काम लिया जा रहा है।